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Apna Ghar/ अपना घर हिंदी कहानी | New Hindi Story With Moral

अपना घर हिंदी कहानी | New Hindi Story With Moral


बहारों की मलिका मदमस्त खुशबू फैलाये हरी चादर ओढ़े हुए पैर पसारे आनंद बिखेर रही थी। सागर की साँसे समीर के झोखों के मिलन से वीणा की तान का मधुर संगीत पिरोये हुए गीत सुना रही थी। भौरों और कलियों के मध्य प्रीत युद्ध छिड़ा हुआ सा लग रहा था। नंदू (खरगोश) अपने झुंड के साथ अठखेलियाँ कर रहा था। चैन और सुकून के मध्य मौज-मस्तियाँ थी। वहां निठल्ला लूला (सियार) आठों पहर अलसाने के अलावा कोई काम नहीं करता, मजबूर था पर करे क्या, हाँ क्या करे ? यही सोचे-सोचे और भी कमजोर हो रहा था की कोई शिकार उसके पास आए और मैं उसका शिकार करू, मगर! सबको अपनी-अपनी जान प्यारी थी।





 टोटो (भालू) रीछ का अपना एक दयारा था। उसके दयारे में जो भी आता वापिस नहीं जाता। टोटो, था तो शैतान ही पर साथ ही समझदार क्योकि वह छोटे जीवों पर  हमला नहीं करता था। जिस वजह से नंदू का परिवार उसी के पास वाले क्षेत्र में सुरक्षित था। दोनों के परिवारों में पुरखों की मित्रता थी, इसका बखूबी पालन दोनों परिवार कर रहे थे। गिलहरी छोटी थी लेकिन चंचल और दूती थी एक सुनी बात को दूसरे से और दूसरे की बात तीसरे से भिड़ा देती थी, जो एक लड़ाई का  कारण बनती, इस बात से उसे बड़ा आनंद आता था। 





रैंचो (गधा) सबका दिमाग खराब रखता था। हमेशा सबको कर्कश संगीत सुनाता रहता था। सब के सब उससे परेशान थे। कोई भी उससे बात करना पसंद नहीं करता था। सब उसे देखते ही किनारा कर लेते क्योकि किसी के पास उसकी बकवास सुनने का वक्त नहीं था। कल्लू (कौआ) का क्या ही कहना, जितना ऊपर से काला था उससे कहीं ज्यादा अन्दर से, हमेशा गलतियों की बरसात किये बिना किसी से अपनी बात शुरू ही नहीं करता था। सब उससे बचने के लिए प्रार्थना करते हे भगवान! किसी भी तरह आज का दिन कट जाये और उस  कलूटे के दर्शन ना हो। हर रोज नया घर बनाता या जबरन गाली  देकर दूसरे के घर में घुस जाता और काउ-काउ-काउ... करता। 





भूती (बिल्ली) का जब मन आता नाचने लगती, कोई न कोई उसे कुछ खाने को दे जाता क्योंकि वह बूढी हो चुकी थी। अब इसके आलावा उसके पास कोई और काम नहीं था और सारे प्राणी किसी न किसी काम में व्यस्त रहते थे। 





सुबह होते ही कल्लू साहेब राजा शेरा का फरमान लेकर निकला। ऐ सुनो-सुनो कमीनो मुझे देख कर छुपो मत, मैं राजा शेरा का फरमान लेकर आया हूँ। राजा साहेब ने तड़के सारे भीख मंगों को राजदरबार में बुलाया हैं। "कितनी प्यारी वाणी हैं रे तेरी" लूला पड़ा-पड़ा सोच रहा था। ओए काले भुत सुना क्या ? तू कौन सा गोरा हैं, टंगु कल्लू ने व्यंग कसते हुए कहा। मैं, मैं तो बहुत ही सुन्दर हूँ तभी तो राजा ने मुझे अपने पास रखा हैं। सफेद पत्थर के छाने नंदू! सुन लिया ना, हाँ ठीक हैं, ठीक हैं। 




कल्लू सब का दिमाग खराब करता हुआ सब से आखिर में रैंचो के पास पहुंचा। दोनों में समानता थी एक जलता था तो दूसरा उसे और तेज करता। ओए कमीने संगीत के अविष्कारक कल सुबह होते ही राजदरबार में अपनी लेने आ जाना। क्या मतलब हैं तुम्हारा की अपनी लेने आ जाना ? सुबह पता लग जायेगा, इतना कहकर कल्लू चला गया। 

ना जाने क्या ख़ुशी मिली की वह अपनी लेने आ जाना का मतलब क्या समझा बस तैयारी में जुट गया। सोचा की मुझे मेरे सपनो की रानी मिलेगी और सपनो में खो गया। 


राजा शेरा समझदार और बहादुर था। उसकी अनुमति के बिना वहां दूसरे क्षेत्र का परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। क्या बात हो सकती हैं ? सुबह होते ही जंगल के सारे जीव-जंतु, पक्षी राजदरबार में इकठ्ठा होने लगे और धीरे-धीरे भीड़ बढ़ती ही गई। तभी जोर से दहाड़ के साथ आबाज आई, आज की सभा का सभापति टोटो को नियुक्त किया जाता हैं। चारों और से तालियों की गड़गड़ाहट हुई। तभी रेंचो संगीत गाता हुआ राजदरबार में पहुँचा। सब के कान खड़े हो गए, सब उसे देखने लगे और वह उछलता हुआ बोला, "कहाँ हैं महाराज, कहाँ हैं मेरी शहजादी, मेरे सपनो की बुलबुल"। इसे क्या हुआ? शेरा ने दहाड़ते हुए कल्लू से कहा, तुमने इसे कल क्या समाचार दिया? कल्लू ने कुछ नहीं बोला। शेरा जोर से दहाड़ा और रेंचो चुप हो गया। यहाँ काम की बात के लिए सब इकट्ठा हुए हैं तेरी-मेरी करने के लिए नहीं समझे! रेंचो तो चुप हो गया मगर! कल्लू की ओर कसाई की निगाहों से देख रहा था, और सोच रहा था कल्लू को पकड़कर इसके ऊपर लीद कर दूँ। कल्लू मुस्कुरा कर रेंचो को और लाल ताता कर रहा था। 



तेज आबाज के साथ! सर्विदित हैं की यह जंगल हमारा घर-परिवार सब कुछ हैं, इसके बिना हम अधूरे ही नहीं बल्कि हमारा अस्तित्व ही नहीं हैं, क्यों? बिलकुल सही हैं, सही हैं, सही हैं। तुम्हारी क्या राय हैं टोटो! इसमें कोई दोराय नहीं हैं महाराज! यही हमारा आज हैं और आने वाला कल भी। हमारे गुप्तचरों द्वारा पता लगा हैं की हमारे घर का पश्चिमी हिस्सा जंगल विहीन कर दिया जा रहा हैं और उन्होंने अपनी खुशियों के लिए हमारी खुशियों को दांव पर लगा दिया। बहुत ही दुःख की बात हैं। ओह! नहीं यह तो बहुत बुरा हैं महाराज। वहां पर कल-कारखाने खोले जा रहे हैं जिससे उनका दूषित जल और प्रदुषण हमारा नामोनिशान मिटा देगा। टोटो ने कहा, हम हमारे आने वाली पीडियों को क्या जवाब देंगे की हम उनके लिए अपने घर की रक्षा नहीं कर सके और इस जहाँ में आते ही वे अपना दम तोड़ देंगे, बताओ क्या किया जाये?




चारों दिशाओं में सन्नाटा सा छा गया, बात ही कुछ ऐसी थी। अचानक कल्लू सबसे पहले बोला, "महाराज! में गालियाँ देकर उनको भगा दूंगा तभी तपाक से रेंचो बोल उठा इस काम को यह नहीं कर सकता महाराज, मैं, मैं संगीतकार हूँ गा-गाकर और लात मारकर उनको परास्त करूँगा। सब हसने लगे। सब शांत हो जाओ, इन सब की भी जरूरत पड़ेगी। लूला वहां भी अपना नित्य काम कर रहा था तभी, लूला के बच्चे! लूला हड़बड़ाया और पल भर में सारा आलस हिरन हो गया। कुछ सुना तूने? हां, सब सुना। क्या सुना ? यही की, हमारा घर हैं परिवार हैं और हमें यही रहना हैं आराम से, कहीं भी नहीं जाना हैं। शेरा और जोर से दहाड़ा, अभी निबाला बना लूंगा ध्यान से सुना कर। जी महाराज! टोटो क्या निर्णय लिया जाए? 



उधर मील (फैक्ट्री) के मालिक ने सरकारी दलालो को मोटी रकम देकर अपना काम करवा लिया। उसका निर्माण कार्य विकास कुमार इंजीनियर के सानिध्य में हो रहा था। मील का मालिक राजनाथ बहुत ही धनी था। वह अपना सारा काम घुस देकर करवा लेता था। विकास! हमारी फैक्ट्री कब तक तैयार हो जाएगी, राजनाथ ने पूछा? कम से कम तीन साल लग जाएंगे इतना बड़ा काम करने में राजनाथ जी। ठीक हैं पर सारा काम ढंग से करना और पैसों की चिंता मत करना। ठीक हैं मैं चलता हूँ विकास। 




महाराज मेरी तो एक ही राय हैं शांत बैठने से कुछ होने वाला नहीं हैं। हमें ही सख्ती बरतनी होगी और उनका सामना हम सब को मिलकर करना होगा। क्या सब सहमत हो? चारों और खामोशी छा गई। कोई जवाब नहीं आया तभी नंदू बोला, "महाराज, मैं आपके साथ हूँ"। इस तरह नंदू की हिम्मत देख कर धीरे-धीरे सब जंगल निवासी हाथ उठाने लगे। शेरा ने कहां यदि कोई भी पीछे हटा तो वह उसका आखरी दिन होगा क्योकि यह लड़ाई किसी एक की नहीं बल्कि हम सब की हैं। कल्लू, गजोधर को सूचित करो क्योकि वह यहाँ से बहुत दूर रहता हैं इसलिए वह नहीं आ सका, वह अपनी टोली जंग के लिए तैयार कर ले। शीघ्र ही समाचार देना नहीं तो तुम जानते हो। जो आज्ञा महाराज! 



फैक्ट्री का काम जोरों से चल रहा  था। राजनाथ ने जंगल में फैक्ट्री पर जंगली जीव के डर से 10 बंदूकधारी तथा बड़े-बड़े 2 कुत्ते तैनात कर रखे थे। विकास एक उच्च श्रेणी का इंजीनियर था हर काम को चुनौती की तरह करता और सफल होता था। 



"तथ्य - इंसान यह समझता हैं की उस पर किसी जंगली जीव ने हमला या मारने की कोशिश की हैं। लेकिन यह सब गलत हैं क्योकि कोई जीव किसी भी जीव का शत्रु नहीं होता, सब अपनी-अपनी दुनिया में मस्त रहना चाहते हैं। लेकिन यह सब उनके द्वारा दी गई चेतावनी होती हैं की 'हमें जीने दो हमारा आशियाना मत उजाडों'। बस यही सब बातें ही होती हैं जो उन्हें मजबूर करती हैं, शत्रुता के लिए"। ये सब बातें इंसानी दिमाग में अंकुरित नहीं होती उसे तो बस दूसरों पर राज करने की चाहत होती हैं। यदि ऐसा ही रह तो एक दिन सारा ब्रमांड इंसान का शत्रु हो जायेगा और सारी सृष्टि का अंत हो जाएगा। 



जंगल इन तेज दौड़ने वाले फुर्तीले जानवरों को पहले तैयार किया गया। सियारो का झुण्ड और तेंदुए इसमें सब शामिल थे। हमला हल्का था क्योकि उसके सेवक कुत्तों द्वारा उनको खदेड़ दिया गया। कुछ मारे गए तो कुछ भाग गए। इस बात को हल्का लेते हुए काम जारी रखा गया। फिर अचानक से तेंदुओं के हमले में दोनों कुत्ते और कुछ मजदूर मारे गए तथा विकास ने अपनी जान मुश्किल से बचाई। इस पलट बार को समझने में विकास को देर नहीं लगी उसने तुरंत राजनाथ को सुचना दी। इतने नुकसान के बाद कुछ दिनों के लिए काम स्थगित कर दिया गया। 




राजनाथ के माथे पर शिकन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी। विकास काम आगे कैसे बढ़ेगा यहाँ हालत बहुत ख़राब हैं। विकास ने समझाते हुए राजनाथ से कहा की यदि यहाँ फैक्ट्री का निर्माण हुआ तो हर रोज किसी न किसी को कुर्बानी देनी पड़ेगी, उसमे हम तुम सभी शामिल हो सकते हैं। इसलिए इसका निर्माण कहीं और किया जाये तो बेहतर रहेगा। तुम्हारा दिमाग तो ख़राब नहीं हैं विकास! राजनाथ ने झल्लाते हुए कहा। इतना पैसा खर्च किया और तुम हो की कहीं और की बात कर रहे हो, काम होगा भले तुम यह करो या ना करो, कोई और करेगा। इन सब बातों से दुःखी होकर विकास ने काम करने से माना कर दिया। 




राजनाथ के द्वारा अनेक इंजीनियर लगाए मगर कोई मारा गया या छोड़कर भाग खड़ा हुआ। इन सब से राजनाथ को बहुत नुकसान हुआ और अंततः राजनाथ, विकास के पास गया और काम चालू करने के लिए मनाने लगा। विकास किसी भी तरह काम आगे बढ़ाओ जो तुम चाहोगे वही होगा। 




रात में हाथियों और जंगली जीवो के द्वारा किसानों की फसल को नुकसान होने लगा। सब अपने-अपने खेतों में जाने से कतराने लगे और डर के साये तले जीने को मजबूर हो गए। सरकार को भी सूचित किया गया पर कोई समाधान नहीं निकला क्योंकि राजनाथ ने मोटी रकम देकर सब का मुँह बंद कर रखा था। कोई भी कार्यवाही होना मुश्किल था। सुबह राजनाथ और विकास की मुलाकात फिर हुई, काफी सोच-समझकर विकास ने एक फैसला लिया। राजनाथ जी मैंने तो सोचा हैं की यदि आप इसे स्वीकार करेंगे तो इसमें हमारा और इन मूक जानवरों दोनों  का भला होगा! क्योकि ये सब अपने घर, जंगल के खत्म होने के डर से यह सब कर रहे हैं।




हमें वहां जंगली पशु चिकित्सालय (वाइल्ड हॉस्पिटल ) खोलना चाहिए। यदि आप सोचते हो की इसमें क्या कमाऊंगा तो, आपको इसके लिए विश्व के हर कोने से चंदा मिलेगा। उसमे आप और ये जंगली जानवर सब के सब खुश रहेंगे, सर्व कल्याण होगा अन्यथा विनाश के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा। इतना समझाने के बाद आज राजनाथ के ह्रदय में सर्वकल्याण की भावना जगी। उसने बिना देर किए चिकित्सालय के आदेश कराए और भारी वन रक्षकों की मौजूदगी में निर्माण होने लगा। 




विकास गांव-गांव जाकर इस विपत्ति से निपटने के लिए यही उपाय बताने लगा। चारों और अभियान ने जैसे आग पकड़ ली हो वृक्षारोपण, जलनिकासी की व्यवस्था की जाने लगी। वनरक्षकों की मदद से अधिकांश जीवों को पकड़ लिया गया जब तक की जंगल फिर से हरा-भरा नहीं हो जाता। सभी को चिड़ियाघर ले जाया गया उनमे टोटो, रेंचो,शेरा, कल्लू तो जबरन पकड़ में आया क्योकि सोचा की गालियां सुन-सुनकर सब भाग जायेंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ। गजोधर का झुण्ड, लूला सियार सब पकड़ लिए गए। सब के सब सहमे और गुस्से में थे। कल्लू को छोटे पिंजरे में बंद कर दिया गया। 3 साल तक कोई भी जंगली जीव बाहर नहीं निकला। कल्लू तो रो-रोकर गाली देना भूल गया और लुला का आलस टूट गया। सब के सब सुधर गए और जंगल हरा-भरा होते ही सब को जंगल में छोड़ दिया गया मगर! चिकित्सा मुआयना करके। सब कुछ शांत हो गया। ख़ुशी की मधुर पवन चारों ओर फिर से बिखर गई। विकास ने जो काम किया हैं उस की जितनी सराहना की जाए उतनी कम थी। 



लेखक: अशोक कुमार मच्या 

-: समाप्त :-



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