यदि आप Best Poetry In Hindi के बारे में search कर रहे है तो ये पोस्ट आपके लिए है। यहाँ आपको life poetry in hindi, sad poetry in hindi, poetry in hindi on life, motivational kavita in hindi का एक बड़ा संग्रह मिलेगा। यहाँ पढ़िए दिल को छू जाने वाली poetry in hindi. शेयर कीजिये इन life poetry in hindi को अपने friends, Love और साथ ही साथ Facebook, WhatsApp & Instagram पर और लोगों को बनाइये अपना दीवाना।
दिल को छू लेने वाली Best Poems/कविताये - Poetry In Hindi
1. एक बार फिर से

काश!
हम जी पाते
अपनी जिंदगी एक बार फिर से,
एक बार फिर से
वापस जा पाते बचपन में
और जिद कर पाते
अपनी सबसे पसंदीदा चीज के लिए,
एक बार फिर से
सो पाते माँ की गोदी में,
फिर से चढ़ पाते
बाबूजी के कंधे पर,
फिर से सुन पाते
दादी-नानी की कहानियाँ,
फिर से चल पाते, गिर पाते ,
उठ पाते, जीत पाते
और फिर से कर पाते प्रेम
उसी शख्स से
जिससे करना चाहते थे ताउम्र।
2. बेनाम दर्द
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बेनाम सा ये दर्द ठहर
क्यों नहीं जाता,
जो बीत गया हैं वो गुजर
क्यों नहीं जाता...
सब कुछ तो हैं, क्या ढूंढती रहती हैं
ये निगाहें,
क्या बात हैं मैं वक्त पे घर
क्यों नहीं जाता...
वो एक ही चेहरा तो नहीं
सारे जहां में,
जो दूर हैं वो दिल से उतर
क्यों नहीं जाता....
मैं अपनी ही उलझी हुई
राहों का तमाशा,
जाते हैं जिधर सब मैं उधर
क्यों नहीं जाता...
वो ख्वाब जो वर्षों से ना चेहरा हैं
ना बदन हैं,
वो ख्वाब हवाओं में बिखर
क्यों नहीं जाता...
3. शहर
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प्रेम एकांत को जन्म देता हैं और
क्रांतियों के शोर को भी
प्रेम में पड़े लोग जानते हैं
शहर के शोर से दूर,
शहर में छिपे सारे एकांत
वो, विद्रोह और नारों से गूंजते
चौराहे भी जानते हैं
मैं अगर कोई शहर हूँ
तो मैं चाहूंगा
मेरी सोच के चौराहों पर
होती रहे क्रांतियाँ
पर मुझमें दूर कहीं बचा रहे
एक एकांत भी
जहाँ कुछ देर साँस ले सके प्रेम।
फूल कभी इतने नहीं मुरझाए
की उनसे खुशबू न आए,
सागर कभी इतने दूर नहीं हुए
की नदी उन तक न पहुँच पाए,
अँधेरा कभी इतना घना नहीं हुआ
की प्रकाश उसे चीर न पाए,
दुःख कभी इतने स्थायी नहीं हुए
की सुख उन्हें खत्म न कर पाए....
और आदमी.....
कोई आदमी कभी इतना कठोर नहीं हुआ
की उससे प्रेम न किया जा सके ....
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की उनसे खुशबू न आए,
सागर कभी इतने दूर नहीं हुए
की नदी उन तक न पहुँच पाए,
अँधेरा कभी इतना घना नहीं हुआ
की प्रकाश उसे चीर न पाए,
दुःख कभी इतने स्थायी नहीं हुए
की सुख उन्हें खत्म न कर पाए....
और आदमी.....
कोई आदमी कभी इतना कठोर नहीं हुआ
की उससे प्रेम न किया जा सके ....
5. गम कैसा
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जो मिला नहीं उसके खोने का गम कैसा
जो होना ही था उसके होने का गम कैसा
होठों पर रखी हुई हँसी झूठी ही तो हैं
छुप-छुप के अकेले रोने का गम कैसा
डराया करता हैं जो, महज ख्वाब हैं इक
हरेक रात अब तन्हा सोने का गम कैसा
पतझड़ में किस पेड़ से, हैं पत्ते नहीं टूटे
बंजर जमीं पर बीज बोने का गम कैसा
बुरे वक्त में हो, बुरी नजर से क्या डरो
किसी अनहोनी जादू टोने का गम कैसा।
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लिखी थी कुछ कहानियाँ
बिना कोई नकाब ओढ़े,
किस्से थे कुछ हसीन से
और धुंधले से,
बिलकुल इन वादियों से मिलते हुए,
जो इश्क़ का
चाँद सा गुमान
दिल में था,
वहीं जुबान पर,
नफरत की चादर
का कोई अस्तित्व नहीं था,
जी हाँ, वहीं इश्क़ था,
वो भी वक्त था,
जब आँखों ही आँखों
में ये अल्फाज़ बयां हो
जाते थे,
वो मन में कुछ गुनगुनाती थी
और हम समझ जाते थे,
धीरे-धीरे इस इश्क़ का
नगमा खत्म हुआ,
जिन आँखों में कभी प्यार
झलकता था,
आज वो नम हैं,
ना जाने कैसा ये गम हैं,
जो पल कभी भँवरे की
तरह झूमते थे,
आज वो इन पन्नों
में कहीं बंद हैं..
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एक उम्र गुजरने के बाद
लड़के नहीं बताते
की हां! मैं आज उदास हूँ
की हां! आज मैं हताश हूँ
की हां! आज में गुम हूँ
खुद की तलाश में हूँ
ठीक उसकी प्रकार! जैसे
माँ नहीं बताती
रसोईघर में रोटी नहीं हैं
ठीक उसी प्रकार! जैसे
पिता नहीं बता पाते हैं
अब मेरे पास पैसे नहीं हैं।
जो होना ही था उसके होने का गम कैसा
होठों पर रखी हुई हँसी झूठी ही तो हैं
छुप-छुप के अकेले रोने का गम कैसा
डराया करता हैं जो, महज ख्वाब हैं इक
हरेक रात अब तन्हा सोने का गम कैसा
पतझड़ में किस पेड़ से, हैं पत्ते नहीं टूटे
बंजर जमीं पर बीज बोने का गम कैसा
बुरे वक्त में हो, बुरी नजर से क्या डरो
किसी अनहोनी जादू टोने का गम कैसा।
6. इश्क़
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लिखी थी कुछ कहानियाँ
बिना कोई नकाब ओढ़े,
किस्से थे कुछ हसीन से
और धुंधले से,
बिलकुल इन वादियों से मिलते हुए,
जो इश्क़ का
चाँद सा गुमान
दिल में था,
वहीं जुबान पर,
नफरत की चादर
का कोई अस्तित्व नहीं था,
जी हाँ, वहीं इश्क़ था,
वो भी वक्त था,
जब आँखों ही आँखों
में ये अल्फाज़ बयां हो
जाते थे,
वो मन में कुछ गुनगुनाती थी
और हम समझ जाते थे,
धीरे-धीरे इस इश्क़ का
नगमा खत्म हुआ,
जिन आँखों में कभी प्यार
झलकता था,
आज वो नम हैं,
ना जाने कैसा ये गम हैं,
जो पल कभी भँवरे की
तरह झूमते थे,
आज वो इन पन्नों
में कहीं बंद हैं..
7. एक उम्र बाद
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एक उम्र गुजरने के बाद
लड़के नहीं बताते
की हां! मैं आज उदास हूँ
की हां! आज मैं हताश हूँ
की हां! आज में गुम हूँ
खुद की तलाश में हूँ
ठीक उसकी प्रकार! जैसे
माँ नहीं बताती
रसोईघर में रोटी नहीं हैं
ठीक उसी प्रकार! जैसे
पिता नहीं बता पाते हैं
अब मेरे पास पैसे नहीं हैं।
Source: Storywalebhaiya.in